चले भी आओ
प्रिय चले भी आओ
बीत गया सावन भी पिया
बूँद मिली ना जल की पिया
एक ओर मौसम की ज्वाला
दूसरा तेरा मुझसे दूर जाना
आग मे घी सा दहकाता है
सूखे सारे मौसम तेरे जाने से
हलचल मन में याद आने से
सूखी लकड़ी सी पतझड से
दर्द पुकारता तुझे अंग-अंग से
पुरवा हवाएँ बहती रग-रग से
प्रिय चले भी आओ
प्रान प्रिय मेरे तुम रखवाले
आकाश के तारे से तुम प्यारे
मेरी वेदना को तुम सम्हाले
ये विरह दावानल सा जलावे
तन-मन हर-क्षण आग लगावे
प्रिय चले भी आओ