चले जाना है इक दिन!!
चले जाना है,
इक दिन,
चले जाना है हम सबको,
अपने अपने बुलावे पर,
अपने लिए निर्धारित दिन,
क्या है यह अपना पराया,
यह सब जग की झूठी माया,
क्या तेरा क्या है मेरा,
क्या लेकर आया,
क्या लेकर है जाना,
सब कुछ यहीं पर छूट है जाना,
इक दिन जब हमको है यहां से जाना!
चीख रहा था तब उस दिन,
इस धरा पर आया जिस दिन,
किसे जानता था तू उस दिन,
अनजानों के बीच घिरा था,
ना उठकर चलने की हिम्मत थी,
ना कुछ कह सकने की सामर्थ्य बची,
टकटकी लगाए देख रहा था,
इस जग की झूठी माया को,
तब जिसने अपने आंचल में छुपा लिया,
और अधरों पर अमृत बरसाया,
सबसे पहले वह थी अपनी,
मां बन कर जिसने प्यार लुटाया!
उस मां ने ही जग का बोध कराया,
उस मां ने ही जीवन जीना सिखलाया,
उस मां ने ही पकड़कर बिठलाया,
उसने ही चलना भी सिखलाया,
उसने ही ममता की छांव भरी,
उसने ही कर्तब्य का बोध कराया,
इक दिन उसको भी जाना था,
बिन कहे ही वह भी चली गई,
अपनी संचित मोह माया को,
कर मेरे हवाले चली गई !
मोह बंधन का यह ताना बाना,
जो हमने है धारण कर अपनाया,
इसी मोह पास में बंधकर हमने,
अपना अपना राग सुनाया,
अपने अपने की चाहत में,
ना निज धर्म ही अपनाया,
लेकर ना कोई सीख हमने,
समय यूं ही गंवाया,
अब चलने की जब आ गई बारी,
अब काहे पछताना,
इक दिन तो है हम सबको जाना!
चलना है हम सभी को,
एक ही पथ पर,
ना है कोई अजर अमर,
ना ही है कोई और डगर,
फिर काहे की हाय तौबा,
फिर काहे का अगर मगर,
फिर काहे की लुट खसोट,
फिर काहे की मारामारी,
फिर काहे को संचय करता रे,
हे अभिमानी,रे अज्ञानी,
जाना तो है इक दिन तुझको भी,
और जाना है मुझको भी,
यह दुनिया तो है आनी जानी,
इस दुनिया की यही अजब कहानी!