चलू गंगाजल सँ कनी नहा लेबे छी !(कविता)
हमर नहि कोनो मोल ,
सिनेहवश हम बिक जाय छी !
अनन्त अर्णव हिय दयालु हो प्रभू
मनुख सेवा नित संवर करैत रहू !
जिनगीक पथसँ दुखिया के असरा देबे छी !
चलू गंगाजल सँ कनी नहा लेबे छी !
मनुख मानवता धरम नहि अपनाबै !
मसजिद मे कत तोहेँ खोजै अज्ञानी ,
मंदिर मे कतौ अहाँ ऐना नजर आये !
जं नफरत निगाह बेसहरा पर !
रोटी पानि के सेवा सँ छितराये
बैसे देव नहि, नजर किया आबै !
हम चलब अहूँ चलू !
चलू किछ पुण्य कमा लेबे छी,
चलू गंगाजल सँ कनी नहा लेबे छी !
लगै जिनगी धन्य भेलनि ,
मानव तन पाबि आय !
नव जगदेवक घर आयल छेलौं
काल्हि हमरो घर आयब भगवान !
हम बढब अहूँ बढू
चलू काल्हि के लेल स्वर्गक सीढी बना लेबे छी,
चलू गंगाजल सँ कनी नहा लेबे छी !
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य