“चली ससुराल गुजरिया”
कछु सकुचात कछू शरमात, चली कहँ सुबकि गुजरिया,
सुपन सजाइकै सतरंगी मन, ओढ़े पियरि चुनरिया।
गाँठि बाँधि कै, जनम-जनम की, बनिकै नाव खेवैया,
धन्य जगत की रीति, चले लै सजनी, आज सँवरिया।
मातु-पिता, पीहर सँग छूटे , छूटे बहिनी-भय्या,
सखी-सहेली, गुड्डा-गुड़िया, कहँ वह छुपन-छुपैया।
झूला आम की डारन छूटौ, छुटि गए सुआ-चिरैया,
भूसी-चूनी कौन करै अब, छूटे हरहा-गैया।
सूनी छत अरु सूनो आँगन, सूनो तवा-कढ़ैया,
कौन लीपिहै, गोबर देहरी, को घर मिलै सजैया।
बूड़ि हिया, दुख कै हिचकोलन, अरु अनजान डगरिया,
नयन नीर सोँ भरत जात, कहुँ छलकि न जाय गगरिया।
भले साँझ है होत, चली परदेस, पिया की नगरिया,
हालति नथुनी मोरि, कहति, तनि धीरे चल रे बटोहिया।
“आशा” हिया सकाति, मिलै अब ढाढ़स कवन बँधइया,
करहिँ भलो सब राम, लगावहिँ पार, सबन की नय्या….!
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रचयिता-
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964