चली गई अब ऋतु बसंती, लगी ग़ीष्म अब तपने
चली गई अब ऋतु बसंती, लगी ग़ीष्म अब तपने
चला गया मधुमास सुहाना,वीते मीठे सपने
गईं बसंती मस्त बहारें, सूनी हुई कछारें
सूख गए सब ताल तलैया, और नदिया की धारें
उग़ हुईं सूरज की किरणें,ताप लगीं बरसाने
पथिक ढूंढने लगे छांव,नैन लगे अलसाने
शीतल पेय आम की चटनी, मांग रहे सब खाने
घर घर पंखे कूलर एसी,लगे हैं सभी चलाने
सीमेंट कांक्रीट से भरी धरा, लगी है ताप बढ़ाने
पेड़ काट मिटा जल जंगल, विकास की गंगा लगे वहाने
सुरेश कुमार चतुर्वेदी