चला तो था मैं पूछने उसका पता
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चला तो था मैं पूछने उसका पता.
राह में मोह,भ्रम.लिप्सा था नंगा खड़ा.
रुक गया मैं भी तमाशबीनों की तरह.
व्याकरण सारे जीवन के गया गड़बड़ा.
तब गणित खोलकर बांचने मैं लगा.
अंक को किन्तु,अक्षर बना न सका.
सूत्र को रौंद-रौंद पतला करता रहा.
मैं बना न सका मिट्टी को पर,घडा.
सूर,तुलसी को पूछा है क्या जिन्दगी?
जो इंगित किया कबीर का था पढ़ा.
मोक्ष के लिए मृत्यु अनिवार्य है.
मोक्ष ने भी कहा कृष्ण ने था कहा.
मन में कुंठा लिए,तन में एवम् तपन.
इंद्र के द्वार देखता दुखित हो चला.
भोग के मोह से भाग्य के जाल में.
सारे जीवन के तन्तु पिघल-गल गया.
कितना! बेताब था,युद्ध को मेरा मन.
शस्त्र सारे गिने पर,भटकतारह गया.
कृष्ण को ढूंढता,कुरुक्षेत्र खोजता.
मन कितना रुंआसा था होता रहा.
कोख से खाली सब हैं जनमते रहे.
वसीयत कुछ को क्यों सब थमाता रहा.
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