चलने दे मुझे… राह एकाकी….
चलने दे मुझे… राह एकाकी….
सफर मेरा एकांकी , राह मेरी एकाकी…. ,पल भर जो रुक गई कारवां हो जाऊंगी ….
रोते रहते आईना स्वयं देख अश्क,… शख्स छुप सा गया है जो संवारता था कभी…
हद और बेहद की ..हद पार कर गया कोईढूंढने से न मिला …चहकता था जो कभी..
थक गया जी.. सांस के आवागमन से…
चीखती रहती है खामोशियां दीवारें दरमियां ..
सुनती… भी .. कैसे जो बैठी खुद खामोशि में….
रोक ले ग़र तू मेरे कदमों को
खामोशी सांसों.. सहम.. सिमट जाऊंगी..
दूर तलक राह रंगीन रागिनियां है जलाती
चंद पल ठहर , कर ले गुफ्तगू तू भी…
कोई शिकवा सौदा न तेरा उधार रहे…
जो करता था तू हरदम वो व्यापार कर ले ..
ले ले दुश्वारियां सारी,लौटा दे मेरे सब्र ,विश्वास का ..
कर सके जो भरोसा दुबारा किसी इंसान पर..
अश्रु