” चलना बड़ा कठिन है ” !!
नई राह है नई डगर है ,
चलना बड़ा कठिन है !!
रिश्तों के अनुबंध नये हैं ,
नई नई सौगंध !
देह सजी है मनसिज नाचे ,
टूट गये कसे बंध !
होठों पर मनुहार सजी है ,
भावों में चिंतन है !!
आँगन , देहरी , द्वार नये हैं ,
रिश्ते बड़े लुभावन !
मीठी चुहल , कहीं चिकोटी ,
मौसम भी मनभावन !
धूल चढ़ी है बीते कल पर ,
चेहरा ज़रा मलिन है !!
क्या भूलूं , क्या याद करूँ मैं ,
विगत कहीं अपना है !
समय भर रहा आज कुलांचे ,
पृष्ठ कई बंचना है !
महकी , बहकी रातें लगती ,
काटे कटे न दिन हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )