चलत खेल इहवाँ ह सह मात के।
भरोसा करीं हम कवन बात के।
चलत खेल इहवाँ ह सह मात के।
हरत चीर केहूँ बा आपन कहीं,
सजा ई कहेला ह बदज़ात के।
मिटल लाज अँखियाँ के पानी मरल,
पियासल दिखत प्यार बा गात के।
भइल खून आपन बा पानी सुनी,
ह आरंभ ईहे त आघात के।
कहाँ लोर अँखियाँ में बाचल कहीं,
कहानी इहे अब के हालात के।
✍️. पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’