चलते-चलते
चलते-चलते
कभी पाव फिसल कर
गिर जाने पर
लोगो के चेहरे से
हसी स्वत: ही फूट पड़ती
उनकी हसी में हसी नहीं
हसी रहती मेरी
बावजूद इसके
कभी ध्यान नहीं दिया
बस उनके हसी की परवाह कर
अन्य किसी तथ्य पर
इधर कुछ ऐसे भी है
जो मेरे इस कृत्य पर हसते नहीं
नाराज हो,
कभी-कभार आग बबूला भी हो जाते
तारीफ़ करते हैं ये हमेशा मेरी अपने सवालों से
ये सवालों से अपने तोड़ना चाहते हैं
‘दर्प’ मेरा,,
बताना चाहते हैं
सब हसते नहीं खुश होते हैं जब गिरते हो
यह तुम्हारा व्यक्तित्व नहीं,
तुम्हारा भविष्य भी नहीं|