*चलते-चलते मिल गईं, तुम माणिक की खान (कुंडलिया)*
चलते-चलते मिल गईं, तुम माणिक की खान (कुंडलिया)
चलते-चलते मिल गईं, तुम माणिक की खान
ईश्वर के संयोग यह, बिना जान-पहचान
बिना जान-पहचान, वर्ष चालीस बिताए
मधुमय इसके रंग, सदा मीठे ही पाए
कहते रवि कविराय, पथिक दो साथ निकलते
धन्य-धन्य है संग, समय बीता जो चलते
माणिक = एक प्रकार का रत्न जिसे अंग्रेजी में रूबी कहते हैं
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451