चलते-चलते।
जीवन-पथ पे चलते-चलते,
यूं ही मिला कुछ लोगों का साथ,
हर सुबह उन्हें संदेश मैं देता,
तभी होती थी दिन की शुरुआत,
क्या ख़ूब था वो शब्दों का सिलसिला,
जो थमने लगा एक समय के बाद,
आमना-सामना तो बस नाम का रहा,
पर शब्दों में हुई अक्सर मुलाकात,
जब तक मुझसे हो सका,
कायम रखा मैंने संवाद,
बेनाम बेहतरीन वो रिश्ते थे ऐसे,
ताउम्र रहेंगे मुझको याद।
कवि-अंबर श्रीवास्तव