*चलती जाती रेल है, इसके सिर्फ पड़ाव (कुंडलिया)*
चलती जाती रेल है, इसके सिर्फ पड़ाव (कुंडलिया)
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चलती जाती रेल है, इसके सिर्फ पड़ाव
रोज उतरते-चढ़ रहे, यात्री रखते चाव
यात्री रखते चाव, सभी के मन को भाती
समझा केवल काल, न आती है यह जाती
कहते रवि कविराय, आयु सब ही की ढलती
बचपन में थी रेल, बुढ़ापे में भी चलती
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451