*चलता रहेगा विश्व यह, हम नहीं होंगे मगर (वैराग्य गीत)*
चलता रहेगा विश्व यह, हम नहीं होंगे मगर (वैराग्य गीत)
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चलता रहेगा विश्व यह, हम नहीं होंगे मगर
1)
विश्व यह जिसने बनाया, मृत्यु इसका मूल है
रोग सौ तन में छुपे हैं, रोग देता शूल है
कष्टमय संसार है यह, दुख-भरी इसकी डगर
2)
सोच कर देखो जगत का, दृश्य रोज बदल रहा
रोज ही सूरज निकलता, रोज देखो ढल रहा
चक्र यह ही चल रहा है, रात-दिन आठों प्रहर
3)
इस अनादि अनंत क्रम में, आदमी क्यों है खड़ा
कर्म करने को स्वतंत्र, परंतु फिर भी कब बड़ा
रेत-सी ढहती रही है, गॉंव बस्ती हर शहर
चलता रहेगा विश्व यह, हम नहीं होंगे मगर
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451