चलता नही कोई ज़ोर है
चलता नहीं कोई ज़ोर है
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चलता नहीं कोई जोर है,
हर शाख पर बैठा चोर है।
कोई नहीं सुनता बोलता,
यह मच रहा कैसा शोर है।
ख़ुश्बू भरी लगती ताज़गी,
आई नवेली सी भोर है।
वह पंख फैलाकर नाचता,
सुंदर बड़ा दिखता मोर है।
है सोचता मनसीरत यही,
जो सोचते सारे ओर हैं।
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सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)