चलता चल –
चलता चल ए मन ! तू अपनी ही रज़ा से,
बहने दे जिधर बह रही है ,
तेरा क्या सरोकार है मनमौजी फिज़ा से।
सोच अगर कोई ख्वाब जिसे तूने इतनी चाहत से सजाया था।
कहीं किसी वजह से उसे तू पूरा न कर पाए,
अधूरे स्वप्न लिए उन्नीदे नयन सो भी न पाए,
कोई प्यासा कुंए से प्यासा लौट जाए।
कोई लहरों में भटक के साहिल तक न पहुंच पाए।
तो फिर कैसे मन को समझाए।
इससे पहले आत्मग्लानि से भरकर,
मन उबर भी न पाए।
तू जी इस तरह कि और भी,
तेरी तरह जीना सीख जाएं।
साहिल से भटके हुए कदम हर हाल में,
बिना रूके साहिल तक जाएं।
कोई राही गम की धूप में झुलसने से पहले ही,
तुझे देख खिलखिलाए।
रेखा किसी प्यासे को तलाश थी एक बूंद की,
पूरा मीठा समन्दर मिल जाए।
तू चल उस ओर,
तेरे पीछे जमाना चला है।
बहने दे जिधर बह रही है,
तेरा क्या सरोकार है मनमौजी फिज़ा से।