*चरित्र ही यथार्थ सत्य*
चरित्र ही यथार्थ सत्य
गुलाब की सुगंध को चरित्र में उतारना।
चरित्र को गुलाब रंग दे सदा सँवारना।
दिखे सदैव दिव्यता सस्नेह बात कीजिए।
उदार दिव्य बीज को समग्र में पिरोइए।
पुनीत भाव भंगिमा करे सदैव वंदगी।
व्यतीत हो इसी प्रकार प्रेमपूर्ण जिंदगी।
मनुष्य में मनुष्यता बनी रहे चला करे।
कुभाव से कभी नही मनुष्य को छला करे।
रहे सदैव शुद्ध भाव प्रीति को जगाइए।
सदैव स्वच्छ भाव से हृदय हृदय मिलाइए।
न दीनता कभी रहे मलीनता विनष्ट हो।
सुरेश भव्य भाव से हृदय विकार नष्ट हो।
कुलीन मन सदा करे मनुष्य की सराहना।
मृदुल विराट हो धरा मधुर मिलन लुभावना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।