*चरण पादुका भरत उठाए (कुछ चौपाइयॉं)*
चरण पादुका भरत उठाए (कुछ चौपाइयॉं)
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1
चरण पादुका भरत उठाए।
अवध राज-सिंहासन लाए।।
खुद को राजा तनिक न माना ।
राम-पादुका सेवक जाना ।।
2
पर्णकुटी में निशिदिन रहते।
राम-राम मन से नित कहते।।
यह थे एक अनोखे राजा।
राज-काज समझे प्रभु-काजा।।
3
कुश की शैया पर थे सोते।
मुनि-से वस्त्र पहन खुश होते ।।
धन्य भरत की यह तप-गाथा।
हुआ उच्च रघुकुल का माथा।।
4
रामराज्य-नायक कहलाए ।
भरत राम से आगे पाए ।।
राजकोष से क्या मनमानी ।
भरत-वृत्ति सबको सिखलानी।।
5
स्वामी नहीं सिर्फ रखवाले ।
भरत पादुका रहे सॅंभाले ।।
राजधर्म अति कठिन सिखाया।
व्यापी नहीं भरत को माया।।
6
भरत-कथा जो जन गाऍंगे।
परम राम का पद पाऍंगे ।।
बसे हृदय सीता प्रभु पाए ।
भरत भक्ति के शीर्ष कहाए।।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451