“चम्पकमाला छंद”
“चम्पकमाला छंद”
घाट बिना नौका कित जाए
हाट बिना सौदा कित छाए।
बात नही तो राहत कैसी
भाव नही तो चाहत कैसी।।
लोभ नचाये नावत माथा
मोह बुलाये लाभन साथा।
भार उठाए मानव धीरा
साधु बनाए साधक हीरा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“चम्पकमाला छंद”
घाट बिना नौका कित जाए
हाट बिना सौदा कित छाए।
बात नही तो राहत कैसी
भाव नही तो चाहत कैसी।।
लोभ नचाये नावत माथा
मोह बुलाये लाभन साथा।
भार उठाए मानव धीरा
साधु बनाए साधक हीरा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी