चमचागिरी- एक कठोर तप
यह एक कला है , साधना है
जीवन भरकर की तपस्या है
चमचों को चमचागिरी से
बिल्कुल नहीं समस्या है।
ज़ुबान पर जी-हुज़ूर
साहब जो बोलें वो मंजूर
बिना मज़दूरी वाले मज़दूर होते हैं
चमचे तलवे चाटकर मशहूर होते हैं।
साहब जीजा,चमचा साला होता है
खिलाफ़ जीजा के मुंह पे ताला होता है
साहब के लिए भी सारी ख़ुदाई एक तरफ़
साहब के लिए जोरू का भाई एक तरफ़।
चमचे साहब के आंख कान नाक बन जाते हैं
ज़रूरत पड़ने पे साहब का मिसवाक बन जाते हैं
चमचागिरी की तमन्ना में पूरी तरह तन जाते हैं
सुबह सुबह साहब का बायां हाथ बन जाते हैं।
लेकिन काम कठिन है ये, तनिक नहीं आसान
बेचके अपनी आत्मा, हर क्षण करना गुन-गान
सब कर लेते हैं चमचे, बस काम एक नहीं करते
हर दिन मरते रहते हैं, एक झटके में नहीं मरते।
जॉनी अहमद क़ैस