चमकी – चमकी बेटियाँ चमकी (साहित्य पीडिया काव्य प्रतियोगिता)
चमकी – चमकी बेटियां चमकी,
चारों दिशाओं में चर्चा है उनकी !
ढूंढ लाई हैं समंदर से सच्चे मोती ,
चूम ली है एवरेस्ट की ऊँची छोटी , खिलखिलाकर कलियाँ फूल बन महकी !
चमकी चमकी बेटियां चमकी,
चारों दिशाओं में चर्चा है उनकी !
दिल हुआ फौलाद अब तेजाब का ना डर,
रोक सकती है नहीं चौखट न कोई दर ,
जोश में भरकर चली क्या लेगी क्या धमकी ! चमकी चमकी बेटियां चमकी,
चारों दिशाओं में चर्चा है उनकी !
अब नहीं चिंगारियां ये आग का दरिया
सख्त हैं इनके इरादे ये नहीं परियां ,
खोल देंगी ये तरक्की के सभी खिड़की ! चमकी चमकी बेटियां चमकी,
चारों दिशाओं में चर्चा है उनकी !
न रहेंगी चुप पुरजोर चीखेंगी ,
हर हुनर लड़कों के साथ साथ सीखेंगी ,
ये किरण बन चमकेंगी आशाएं ये कल की ! चमकी चमकी बेटियां चमकी,
चारों दिशाओं में चर्चा है उनकी !
डॉ शिखा कौशिक ‘नूतन’