चप्पल बुआ।
चप्पल बुआ ! कितना अजीब नाम है।
है ना ? पर इसमें बड़ी बात क्या है। ये पूरी दुनिया ही अजीबोगरीब चीज़ो से भरी पड़ी है। अजीब लोग , अजीब चेहरे , अजीब घटनाएं। यदि बारीकी से देखा जाय तो यह पूरी दुनिया ही अजीब है। ख़ैर चप्पल बुआ की कहानी पर वापस आते हैं। यह नाम उनपर तो एकदम असंगत लगता है। मध्यम कद काठी की गौर वर्ण की महिला जो तकरीबन पचपन साल के आसपास है और जिसे कोई भी जरा ध्यान से देखेगा तो तुरंत समझ जाएगा कि यह महिला अपनी युवावस्था में कितनी मोहक , आकर्षक रही होगी। चप्पल बुआ के बारे में कम लोग ही जानते हैं पर जो जानते हैं उन्हें ये पता है कि वो एक बड़े और संभ्रांत घर की पुत्री थीं तथा उनका विवाह भी वैसे ही एक खानदान में हुआ था। सुंदर प्यार करने वाला पति , सम्मान देने वाला घराना। बुआ सबसे खुश थी तो बुआ से भी सब खुश थे। बस एक शिकायत थी। विवाह के वर्षों बीत जाने के उपरांत भी उनकी गोद सूनी थी। उनके पति उनसे इस शिकायत पर ध्यान न देने की सलाह देते और कहते अच्छा ही है तुम्हारे हमारे बीच कोई नहीं है। मुझे तुम्हारा अखण्डित प्रेम प्राप्त है। मेरे लिए इतना ही बहुत है। उनकी इस बात पर जब बुआ भौंहें तिरछी कर उनकी तरफ देखतीं तो उनके पति मुस्करा कर कहते हाँ मैं स्वार्थी हूँ। मैं तुम्हारा प्रेम किसी के भी साथ बांट नहीं सकता। पर बुआ यह भली भांति समझती थीं कि उनके पति ये सब बातें सिर्फ बुआ के मन को बहलाने के लिए करते हैं। सबकुछ अच्छा चल रहा था सिवाय एक कमी के। पर यह “अच्छा” दुनियाँ में सभी के साथ बहुत दूर तक नहीं चलता । एक दिन उसने बुआ का साथ भी छोड़ दिया। उनके पति को भयंकर उदरशूल हो गया। बुआ और परिवार वाले उनके पति को लेकर समीप के शहर भागे भागे पहुँचे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया , सर्जरी हुई पर उनके पति बुआ का हाथ सदैव के लिये छोड़कर चले गए। बुआ के पास उनके पति का अतीत का प्रेम और बुआ का एकाकीपन रह गया। बुआ अहिल्या हो गईं। एक कठोर प्राणहीन पत्थर। पल छिन , दिन रात , महीने वर्ष सब एक दूसरे में गुंथ कर एक काला बादल बनकर उनके ऊपर छा गए। वे जैसे उन काले बादलों का एक रंग बनकर उनमें ही खो सी गईं । पर कहते हैं न कि कभी कभी दुःख किसी को चुन लेता है और फिर जीवन भर उसका साथ नहीं छोड़ता। ऐसा ही बुआ के साथ भी हुआ। जब बुआ खुश थीं , रंगों से भरपूर थीं , भावनाओं से भरी हुईं तब उनपर भूल कर भी कुदृष्टि न डालने वाले जेठ की नज़र तब उन पर पड़ी जब वे प्राणहीन हो चुकी थीं। कितने भी दुख में हों पर वे एक स्त्री थीं। उन्हें जेठ की निगाह की चुभन तुरन्त महसूस हुई। वे और ज्यादा पथरा गयीं। सिमट गयीं। पर वे जितना सिमटती उनके जेठ का उन्हें खोलने का निश्चय और दृढ़ होता जाता। घर के अन्य लोग तो उनके जेठ उनके ऊपर ऐसी निगाह रखते हैं ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। एक रात उनकी काली किस्मत ने अंधेरे का लाभ उठाते हुए उनपर काले रंग की एक और परत चढाने की कोशिश की। किन्तु बुआ ने उनकी तरफ बढ़ते अंधेरे को इस तरह धकेला की वह दीवार से टकरा कर बेसुध होकर बिखर गया। बुआ ने तत्काल घर छोड़ दिया। वे चलती रहीं , चलती रहीं बस चलती ही रहीं।
उनकी आंख खुली तब उन्होंने स्वयं को एक कमरे में पाया।वे हड़बड़ाकर उठ बैठीं। कुछ समय तक तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि वे कहां हैं। फिर सहसा ही बीती रात की सारी घटनाएं जीवंत हो उठीं। उन्होंने अपने कपड़ों को सही किया और कमरे के बाहर आईं। बाहर आते ही उनकी आंखें आश्चर्य से भर उठीं। वे एक मंदिर के सामने खड़ी थीं। वही मंदिर जहां वे पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर अनगिनत बार आईं थीं। वे थोड़ा आगे बढ़कर मन्दिर की तरफ जाती सीढ़ियों का सहारा लेकर बैठ गईं। उन्होंने सोचा ये कैसा संयोग है कि जहां वे पुत्रप्राप्ति की आस से आती थी आज उसी मन्दिर ने वयस्क हो चुके पुत्र की तरह उनको सुरक्षा प्रदान की थी। तभी पुजारी उनके पास आकर बैठ गए और पितृवत स्नेह के साथ उनके सर पर हाथ फेरने लगे। पूछा बेटी कैसी हो , कल रात किसी के गिरने की आवाज आने पर बाहर आया तो तुम बेसुध पड़ी थी। बुआ ने कहा कि अब वे ठीक हैं। पुजारी उनके परिवार वालों को जानता था उसने उन्हें उनके घर जाने का प्रस्ताव रखा। पर बुआ ने मना कर दिया। ससुराल , मायका सब समझाने मनाने आये पर बुआ टस से मस नहीं हुईं। उन्होंने मन्दिर को ही अपना घर बना लिया। उन्हें मंदिर और मंदिर से जुड़ी हर वस्तु सुकून देती थी। उन्हें जाने क्यों ऐसा लगता था कि यदि उनके पति की असमय मृत्यु न हुई होती तो यह मंदिर उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करता।
वे दिन भर सीढ़ियों के पास एक वृछ के नीचे बैठी रहतीं और रात को कमरे में जाकर सो जातीं। धीरे धीरे लोग मन्दिर जाते समय अपना सामान , जूते चप्पल आदि बुआ के पास छोड़ जाते और लौटते समय अपना सामान लेते और बदले में उन्हें कुछ रुपये दे जाते।इस तरह उनको अपना नया नाम चप्पल बुआ मिला। वे रात को सारे रुपये मन्दिर की दान पेटी में डाल देती थीं। पुजारी ने उनसे ऐसा न करने को कहा तो बुआ ने कहा कि उनकी जरूरतें मंदिर से पूरी हो जाती हैं उन्हें पैसे की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे ही दिन बीत रहे थे। उन्हें यहां आए वर्षों हो गए थे। चप्पल बुआ को लगने लगा था कि उनके जीवन के शेष दिन यहीं शांति से इसी तरह गुजर जाएंगे। पर मनुष्य जो सोचता है वह होता कहाँ हैं। परिस्थितियों को तो पलक झपकने से भी ज्यादा तेजी से पलटने की आदत होती है।
उस दिन मन्दिर में भक्तों की उपस्थिति अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही थी। चप्पल बुआ के पास भी काफी सामान इकट्ठा हो गया था। वो भीड़ की तरफ देखती हुई विचार कर रही थीं कि पता नहीं कितनी तरह की कामनाएं लेकर लोग आए होंगे। कितनो की तो पूरी भी हो चुकी होंगी और कितने अभी आस लगाए होंगे। तभी उनकी दृष्टि भीड़ में एक नव युगल पर पड़ी। वे थोड़ा परेशान दिख रहे थे। उनकी परेशानी का कारण उनका बच्चा था। जब वे लोग दर्शन करने के लिए आगे बढ़ते तो बच्चा भीड़ देखकर जोर जोर से रोने लगता। वे भीड़ से निकल आते तो बच्चा चुप हो जाता। बुआ ने गौर किया वे कई बार प्रयत्न कर चुके थे पर हर बार उन्हें बच्चे के कारण वापस लौट आना पड़ता था।बुआ कौतूहल से उनकी तरफ देख रही थीं कि अचानक युवक की निगाहें उनकी निगाहों से टकरा गयीं। जैसे नया चोर पकड़े जाने पर सकपका जाता है वैसा ही हाल बुआ का हुआ और उनकी निगाहें दूसरी तरफ देखने लगीं। पर इतने में ही युवक को एक तरकीब सूझ गयी। बुआ ने वापस उनकी तरफ देखा तो नवयुगल आपस में कुछ बहस सी कर रहे थे। एकाएक दोनों उनकी तरफ ही आने लगे।बुआ भी थोड़ा सम्हल कर बैठ गईं।
युवक ने आते ही उनसे कहा : जी हम एक परेशानी में फंस गए हैं।
बुआ: वो तो मैं काफी देर से देख रही हूं।
युवक : आप हमारी समस्या सम्भवतः सुलझा सकती हैं।
बुआ : मैं ! भला कैसे ?
युवक : यदि आप हमारे बच्चे को थोड़ी देर सम्हाल लें तो हम दर्शन करके आ जाएंगे।
बुआ : पर बच्चा तो इतना रो रहा है। वह मेरे पास कैसे रुकेगा ? आप एक एक करके दर्शन क्यों नहीं कर आते।
युवक : दर्शन साथ ही करना है। वरना दिक्कत ही क्या थी। और यदि पता होता कि यह इतना परेशान करेगा तो हम किसी और को भी साथ ले आते। वैसे यह ज्यादा रोता भी नहीं और किसी को अनचीन्ह भी नहीं मानता।पर आज इसे क्या हो गया है समझ नहीं आ रहा।
बुआ ने गौर किया कि सारी बातचीत युवक ही कर रहा था। उसकी पत्नी पूरे वार्तालाप में चुप ही थी। शायद वह अपने पति के विचार से सहमत नहीं थी। युवक आशा भरी निगाहों से उनकी तरफ देख रहा था। बुआ खड़ी हुईं और उन्होंने बच्चे को अपनी गोद में लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो पत्नी ने थोड़ी हिचक के साथ बच्चा उन्हें दे दिया। बच्चा थोड़ा कुनमुनाया पर रोया बिल्कुल नहीं। कुछेक मिनट वे सब लोग चुपचाप खड़े रहे। बच्चा बड़े आराम से बुआ की गोद में लेटा था। युवक के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गए। उसने अपनी पत्नी से कहा: मैंने क्या कहा था सविता। चलो दर्शन करके आ जाते हैं। जी हम जितना जल्दी आ सकते हैं आने का प्रयास करेंगे। तब तक आप इसे सम्हाल लीजिये। बुआ ने सहमति में सर हिलाया। युवक का चेहरा खिल उठा। उसने बुआ की तरफ कृतज्ञता भरी निगाहों से देखा और सविता के साथ मन्दिर की तरफ बढ़ गया। बुआ उनको जाते देखते रही।उनको एक बात तो अच्छी तरह समझ आ गई थी कि यदि सविता का वश चलता तो वो हरगिज़ अपने बच्चे को किसी को नहीं सौंपती।
बुआ ने इन सब विचारों को परे धकेल कर बच्चे की तरफ ध्यान से देखा तो दो घटनाएँ एक साथ घटी। एक तो उनका ह्रदय प्रसन्नता से भर उठा साथ ही साथ भीतर ही कुछ दरक सा गया। इन मिश्रित भावों ने बुआ को गहरे तक झकझोर दिया। सहसा उनके मन में बेईमानी की एक बड़ी शक्तिशाली लहर उठी और उनके अंतर्मन तक को भिगो गयी। उन्होंने बच्चे की तरफ वापस देखा तो वह नींद में मुस्करा रहा था। बुआ को लगा जैसे कि वह उन्हें देखकर मुस्करा रहा है। बुआ को लगा यह बच्चा मन्दिर के देवताओं ने उन्हें उपहार में दिया है।
व्यक्ति की लालसा जब घनीभूत हो जाती है तब उसका विवेक उसका साथ सबसे पहले छोड़ता है। बुआ के साथ भी यही हुआ। उन्होंने भीड़ की तरफ नज़र डाली। सब अपने में व्यस्त थे किसी का भी ध्यान किसी की तरफ नहीं था। वे उठीं और बच्चे को साथ लेकर मन्दिर की तरफ आने वाले रास्ते के विपरीत चल पड़ीं। उनको जीवन का एक उद्देश्य मिल गया था। वे उसी रात की तरह चलती रहीं , चलती रहीं और जब थक गयीं तब एक चट्टान का सहारा लेकर बैठ गईं। बच्चा जाग गया था। पर आश्चर्य यह था कि वह रोने के बजाय कभी किलकारी भरता , कभी मुस्कराता।बुआ को लगा जैसे उनकी गोदी में पूरा देवलोक आ गया है। वे सोचने लगी कि इतने सालों का इंतज़ार आज पूरा हो गया। आज उनकी कोख खिल गयी। बंजर धरा पर स्वर्ण कमल उग आए। उनके मन ने उन्हें कोंचा वे ये क्या सोच और कर रही हैं। एक नवयुगल के लाडले को उससे चुराने का विचार कर रही हैं। इतनी बुरी तो वो नहीं हैं। दूसरे विचार ने इसका प्रतिवाद किया । कहा वे क्या गलत करने की सोच रहीं हैं। दुनियाँ ने उनसे कितना कुछ छीना है। आज यदि वे उस दुनियाँ से कुछ चुरा रहीं हैं तो क्या गलत कर रही हैं। उन्होंने दुविधा भरें विचारों के साथ बच्चे की तरफ देखा तो वह इस क्रूर दुनियाँ से बेख़बर मुस्करा रहा था। बुआ को आनन्द के सागर की अनुभूति हुई , उन्होंने मन ही मन कुछ तय कर लिया। गलत या सही। पर तय कर लिया।
यहां मन्दिर में दर्शन के पश्चात जब वे नवयुगल वापस आये तो बुआ अपने स्थान पर नहीं थीं। एक बार तो उन दोनों की धड़कन ठहर सी गयीं। दोनों ने एक दूसरे की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। जबाब किसी के पास नहीं था। सविता का धीरज टूट गया उसने कातर स्वर में कहा : रवि वो औरत कहाँ गयी और हमारा बच्चा कहाँ है ?
रवि के पास कुछ जबाब नहीं था। थोड़ी देर बाद सविता सुबकने लगी। उसकी हालत देख लोग इकट्ठा होने लगे। जो चप्पल बुआ को जानते थे वे कतई इस बात को मानने को तैयार नहीं थे की बुआ किसी के बच्चे का अपहरण कर सकती हैं। और जो उन्हें नहीं जानते थे वे कह रहे थे कि इस दुनियां में कुछ भी असंभव नहीं। हो सकता है बुआ बच्चे को लेकर कहीं चली गईं हों।लोग पुलिस को बुलाने की बात करने लगे। पर पुजारी ने कहा कि इतनी जल्दबाज़ी मत करो। बुआ कुछ देर में वापस आ जाएंगी। पर बुआ को नहीं आना था तो वो नहीं आयीं।
पुजारी जी ने कहा थोड़ा खोजबीन कर लेते हैं। यदि उसके पश्चात भी बुआ नहीं मिलतीं तो अवश्य ही पुलिस को सूचित कर दिया जाएगा। पुजारी जी ने उसी रास्ते पर जाने की सलाह दी जिधर बुआ गयीं थीं। क्योंकि यदि वे आम रास्ते से गयीं होती तो किसी न किसी ने उन्हें अवश्य देखा होता। धड़कते दिल के साथ सब लोग उस रास्ते पर चल पड़े। चलते चलते लोगों के पांव थकने लगे। लोग अधीर होने लगे। पर यह अधीरता कुछ गुल खिलाती उसके पहले उन्हें एक चट्टान के पास बच्चे के पास बुआ दिखाई पड़ीं। दूर से ही दिखाई पड़ रहा था कि वे बच्चे के अस्तित्व के साथ एकाकार हो गयीं थी। वे उसके साथ हँस रहीं थीं। मुस्करा रही थीं। वे भी एक बच्चे में रूपांतरित हो चुकी थीं। ऐसा अद्भुद दृश्य भीड़ ने आजतक नहीं देखा था। लगता था देवकी और यशोदा एक साथ एक जगह बाल कृष्ण के साथ खेल रहीं थीं। रवि ने भीड़ को रुकने का इशारा किया तथा अकेले ही बुआ की तरफ बढ़ चला। वह बुआ के पास पहुँचा पर बुआ इससे बेखबर बच्चे के साथ क्रीड़ा में मग्न थीं। कुछ देर तक चुपचाप देखने के पश्चात उसने नरम स्वर में बुआ को आवाज दी : बुआ जी।
यह नरम स्वर भी बुआ की चेतना में जोर से गुंजा और उन्होंने सर उठाकर रवि की तरफ देखा। उस एक पल ने बुआ की आंखों ने रवि से सारी हकीकत बयान कर दी। वे रवि के समीप आईं और बच्चा रवि को देकर उसके कदमों पर गिर गयीं और बुदबुदाने लगी : बेटा मुझे माफ़ कर देना , हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।
रवि ने एक हाथ से बच्चे को सम्हला तथा दूसरे हाथ से बुआ को ऊपर उठाया और मुस्कुराते हुए बच्चे को उनकी गोद में देते हुए कहा कि माफी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं। मुझे आज माँ और बच्चे को दादी माँ मिल गयीं।
कौन कहता है कि दुःख जिसके पीछे पड़ जाता है उसका पीछा मृत्यु पर्यंत नहीं छोड़ता।