चन्द फ़ितरती दोहे
फ़ितरत जाने कब यहाँ, कौन रूप दिखलाय
कहीं कठोर स्वभाव तो, कहीं सरलता भाय //1.//
प्रेम, मित्रता और छल, स्वभाव कहीं ना एक
दृष्टि वहीं रहती मगर, दिखते दृश्य अनेक //2.//
इस वक़्त के बहाव में, फ़ितरत रंग जमाय
मक्कारी फूले फले, निर्धन सूखी खाय //3.//
प्रकृति कहो, आदत कहो, या तुम कहो स्वभाव
लेकिन फ़ितरत में छिपा, चालाकी का भाव //4.//
फ़ितरत है इंसान की, रोज़ बदलता जाय
घूमे फिरे यहाँ वहाँ, माखन-मिश्री खाय //5.//
फ़ितरत न बदले कभी, दिखावटी व्यवहार
दाव पडे़ यदि स्टीक तो, वो करे पलटवार //6.//
चालबाज़ इंसान तो, सदा रहे बेचैन
छीने वो संसार में, सबका ही सुख चैन //7.//
छिपा रहे आस्तीन में, दूध पिला दिन-रात
चाहे प्रेम जताइये, लगा रहेगा घात //8.//
लम्बी-चौड़ी हांकना, है आपका स्वभाव
इसलिए नहीं दे रहा, मैं जनाब को भाव //9.//
व्यर्थ करो ना ज़िन्दगी, बातों में बेकार
रख भीतर गम्भीरता, आदत बदलो यार //10.//
छाया दिलो-दिमाग़ पर, तेरा एक फ़ितूर
पागल प्रेमी से कभी, मिलना आप ज़रूर //11.//
दिन-रात दिखे तू मुझे, रहूँ तुझी में मग्न
आदत ये छूटे नहीं, क्यों लागी ये अग्न //12.//