चन्द ख्वाब
चन्द ख्वाब राख में भी धड़कते मिलेंगे ,
मेरा वजूद जब , कुछ आंखों से बहेगा ,,,
ज़िन्दा हैं ख्वाब इस कदर कि नींद मर गई ,
ज़िद ओढ़ बैठा मन अब कुछ ना सुनेगा ,,,,
बैठा है चांद ले कर रोशनी के धागे ,
कल सुबह की खातिर नए पंख बुनेगा ,,,
– क्षमा उर्मिला