च़न्द अल्फ़ाज़
सोचता हूं क्या भूल गया जो अब तक याद था मुझको।
शायद तेरी चाहत में खुद को भी भूल गया हूं।
इल्म़ की दौलत कभी लुटती नहीं। जितना भी बांँटो बढ़ती ही जाती है ।
अपने नज़रिए के चश़्मे को साफ रखो। सही इंसान को पहचानने में मददग़ार साबित होगा ।
किसी मजबूर की मजबूरी का फायदा उठाना क़ुफ्र है।
उसकी मदद करना सब़ाब है ।
अपनी शख्स़ियत में वो अस़र पैदा करो के जो भी तुमसे मिले तुम्हारा काय़ल हो जाए ।