चन्द अल्फ़ाज़
नेक़ी और ब़दी में बस फर्क यही है ।
एक दिल की उपज है तो दूसरी दिमाग़ की पैदावार है ।
उनके हुस्न ए मुजस्सिम़ का अस़र इस क़दर है । कि मेरी आवाज़ गुम़ होकर रह गई हैं ।
जब भी किसी मज़लूम को बेब़स देखता हूं । ख़ुद ब ख़ुद मेरे क़दम म़दद को बढ़ जाते हैं ।
उनके ग़ेसू की थक़न से दूर उफ़क में डूबते चाँँद का ए़हसास होता है ।
दौल़त और श़ोहरत का अस़र इस क़दर है । कि कल तक जो खुदगर्ज़ थे आज हमद़र्द से बन गए हैं।