चन्द अल्फ़ाज़
हमें जिन से ऱहम की उम्मीद थी उन्हीं ने सरे म़हफिल हमारी बेचाऱगी का मज़ाक बना डाला।
उन दग़ाबाज दोस्तों से दुश्मन बेहतर है जो श़िद्दत से अपनी दुश्मनी तो निभाते हैं ।
जिनको समझा था घूरे के कीड़े इस जमाने ने अब तक । वक्त बदलते वे तो नाय़ाब हीरे निकले।
यह ज़िंदगी भी बड़ी गज़ब है । यहां दोस्त अपनी-अपनी मंज़िल पर जुदा हो जाते हैं और जो अब तक अजनबी थे हमसफ़र बनकर दोस्त बन जाते हैं।