चन्द अध्यात्मिक दोहे:
प्रियतम मैं जाऊं कहाँ, दिशाहीन हूँ आज.
है कोई मेरा नहीं, बस तू ही सरताज.
पंथ निहारूं रात – दिन,खुद का अक्स निहार.
खुद से ही तुझसे कहूँ, आ भव से अब तार.
बांह पकड़ ली थी कभी, लगे अभी की बात.
जियरा घबराया रहे, हर पल – हर दिन रात.
पानी में झाँका करूँ, मुझमें तू मिल जाय.
तू जाने तू है कहाँ, तुझ बिन चैन न आय.
तू तो हिय में ही बसा, हैं हम दोनीं एक.
लय हो जाऊं तुझी में, है यह सबसे नेक.
‘सहज’ मुझे प्रियतम तिरा,मिला सहज सहवास .
बस हर पल प्रियतम मुझे, तेरा मिले उजास.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
आदिवक्ता/साहित्यकार
सर्वाधिकार सुर