‘ चन्द्रशेखर आज़ाद ‘ अन्त तक आज़ाद रहे
आगरा का एक मकान जिसमें चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा, विजय सिन्हा, जयदेव कपूर, डॉ. गया प्रसाद, वैशम्पायन, सदाशिव, भगवान दास माहौर आदि दल के सक्रिय सदस्य आपस में विनोद करते हुए मजाकिया विचार-विमर्श कर रहे थे कि कौन किसतरह पकड़ा जायेगा और पकड़े जाने पर क्या करेगा?
भगत सिंह पर फब्ती कसते हुए राजगुरु ने कहा- बच्चू [ विजय कुमार सिन्हा ] और रणजीत दोनों ही जब सिनेमा हॉल में पिक्चर देख रहे होंगे तो गोरी फौज आयेगी और इन्हें यकायक गिरफ्तार कर लेगी। जब ये पकड़े जायेंगे तो पुलिस से कहेंगे- ‘‘अरे हमें पकड़ लिया, चलो ठीक है। मगर पिक्चर तो पूरी देख लेने दो।’’
भगत सिंह भी भला इस बात पर चुप कैसे बैठते। उन्होंने राजगुरु पर व्यंग्य किया-‘‘ ये हजरत तो जब सो रहे होंगे तभी पुलिस इन्हें पकड़ लेगी। ये तब भी नींद में ही होंगे और रास्ते में हथकडि़यों के साथ चलते-चलते जब पुलिस लॉकअप में जागेंगे तो कहेंगे-‘‘ क्या मैं सचमुच पकड़ा गया हूँ या कोई सपना देख रहा हूँ।’’
दल के मुखिया चन्द्रशेखर आज़ाद ने इस बार भगवान दास माहौर पर निशाना साधा-‘‘तू भी तो बहुत सोता है। देखना एक दिन तू भी कहीं सो रहा होगा और पुलिस तुझे गिरफ्तार कर लेगी। पर ध्यान रखना तू भले ही पकड़ा जाये, पर मेरी पिस्तौल पुलिस के हाथ नहीं लगनी चाहिए। जाने कैसे-कैसे मैं पिस्तोलों का इन्तजाम करता हूँ।’’
पंडित चन्द्रशेखर आज़ाद की इस बात को सुनने के बाद सभी क्रान्तिकारी साथी उनकी ओर मुखातिब हो गये। भगत सिंह ने हँसी के लहजे में कहा-‘‘पंडित जी जब आपको कोई मुखबिर पकड़वा देगा तो फाँसी पर चढ़ाने के लिए जल्लादों को दो रस्सियों की जरूरत पड़ेगी। एक आपके गले और एक आपकी मोटी तोंद पर बाँधनी पड़ेगी।’’
भगत सिंह की इस बात को सुनकर पंडित चन्द्रशेखर आजाद थोड़ा तैश में आकर बोले-‘‘अरे मूर्खो में तुम्हारी तरह गिरफ्तार होकर हथकडि़यों के साथ चलते हुए सड़क पर अपना बन्दरिया नाच नहीं करवाऊंगा। रस्से-बस्से तो तुम्हारे ही गले में पड़ेंगे। जब तक मेरे पास यह ‘बम तुल बुखारा’ पिस्तौल है, कोई माई का लाल अंग्रेज मुझे जीवित गिरफ्तार नहीं कर सकता। आज़ाद तो अब भी आज़ाद है और आज़ाद ही रहकर मरेगा।’’
आखिर वह समय ही आया जब आज़ाद की ‘बमतुल बुखारा’ ने आज़ाद के आज़ाद ही रहने के संकल्प को पूरा कर दिखाया।
इलाहाबाद का एलबर्ट पार्क। 27 फरवरी का दिन। पार्क में अपने एक साथी के साथ चन्द्रशेखर आज़ाद बातें करने में तल्लीन। तभी आज़ाद की निगाह पार्क के बाहर सड़क पर पड़ती है। वीरभद्र तिवारी मुखबिर को देखकर वे चौंक उठते हैं। आज़ाद चारों ओर निगाह दौड़ाते हैं। देखते हैं कि पार्क को पुलिस ने घेर लिया है। अचानक एक सनसनाती हुई गोली आती है और आज़ाद की जाँघ में सूराख बना देती है। प्रत्युत्तर में घायल आज़ाद गोली दागते हैं और पुलिस अफसर की कार के टायर को पंचर कर देते हैं। दूसरी गोली फिर सनसनाती हुई आती है और आज़ाद के फेंफड़े में धँस जाती है। अजेय पौरुष खून से नहा उठता है। अपने साथी को सतर्क करते हुए आज़ाद इमली के पेड़ की ओर में हो जाते हैं। सामने उन्हें पिस्टल थामे अंग्रेजी हुकूमत का पिट्ठू नॉट बाबर दिखायी देता है। आज़ाद निशाना साधते हैं। एक ही गोली का करिश्मा, नोट बाबर की पिस्टल वाली कलाई टूटकर शरीर से अलग हो जाती है।
चारों ओर से हो रही गोलियों की बौछार के बीच आज़ाद चीखते है-‘‘ अरे हिन्दुस्तानी सिपाहियो! मैं तो तुम्हारे लिये ही आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा हूँ और मूर्खो तुम मुझी पर गोलियाँ चलाये जा रहे हो। चलाओ, चाहे जितनी गोलियाँ चलाओ, लेकिन मैं तुम्हें अपना भाई होने के नाते नहीं मारूँगा।’’
तभी उन्हें दाहिनी ओर से गोली चलाता विश्वेश्वर सिंह दिखाई देता है। ‘अच्छा तू भी ले’ कहकर आज़ाद निशाना साधते हैं। विश्वेश्वर सिंह का आज़ाद को लगातार गाली बक रहा जबड़ा और टोप गिल्ली की तरह उड़ जाते हैं। इस हैरत में डालने वाले कारनामे को देखकर सी. आई. डी. का आई. जी. इसे ‘वन्डरफुल शॉट’ कह उठता है।
पिस्तौल में अब एक ही गोली शेष है। भंयकर रूप से घायल आज़ाद को भी इस बात का एहसास है। वे ‘बमतुल बुखारा’ को अपनी कनपटी पर रखते हैं और बमतुल बुखारा की अन्तिम गोली आज़ाद को इस दुनिया से हमेशा के लिये आज़ाद कर देती है।
क्रान्ति के अमर सिपाही ने अपना वचन निभाया। अंग्रेज उसे जि़न्दा रहते हुए न पकड़ सके। ब्रिटिश सरकार के गीदड़ और चमचे अब कर ही क्या सकते थे। वे आज़ाद के शव को ट्रक में लाद कर अपने आका अंग्रेज अफसरों की ओर चल दिये। आज़ाद अन्त तक आज़ाद रहे।
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