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20 Nov 2018 · 4 min read

चन्दा (रेखाचित्र)

चन्दा

पशुओं को जब मानवीय प्रेम मिलने लगे तो वे भी मानव के साथ आत्मीय व्यवहार करने लगते हैं। अधिकतर समय यदि मनुष्य पशुओं के साथ बिताने लगे तो पशुओं को भी उस मनुष्य के साथ प्रेम का भाव संबंध बन जाता है। उन्हें उस मनुष्य के साथ आदमी लगाव हो जाता है।
ऐसी ही करुणाद्रित घटना मेरे बचपन में घटित हुई। जिसको भूल पाना शायद मेरे सामर्थ्य में नहीं है।
एक दिन सुबह-सुबह मेरे नाना जी का घर आगमन हुआ। मैं जब घर से बाहर निकला तो देखा कि उन्होंने अपने साथ एक बछिया (भैंस का मादा बच्चा) लेकर आए हैं; साथ में एक नौकर भी है, जिसने उसे रस्सी से पकड़ रखा है। उसे इस तरह बांधा गया था, शायद वह आने को यहां तैयार नहीं थी।
नाना जी अपने घर के संपन्न व्यक्ति थे। उनके घर बहुत सारी गाय, भैंस, बकरियाँ थी; किंतु हमारे घर गाय-बकरियां तो थी किंतु भैंस नहीं थी, इसलिए उन्होंने यह सोचा कि इन्हीं गाय-बकरियों के बीच में एक भैंस भी पाल सकते हैं। अतएव उन्होंने दान में एक बछिया देने का निर्णय लिया था।
उस बछिया का घर में बड़े जोरों से स्वागत सत्कार हुआ। मां नी आरती सजाई। बछिया को कुमकुम-चावल का टीका लगाया गया। आरती उतारी गई और अंदर थान में लाकर उसे आज भोजन भी कराया गया।
बछिया बहुत ही सुंदर रंग काला-काला जैसे पूरे शरीर पर काजल पोत दिया गया हो। बड़ी-बड़ी उभरी हुई आंखें, जिनमें एक विनम्र शांति भरी हुई थी। सुडौल लंबी गर्दन, टांगे मजबूत, पुष्ट लचीले, सींग जैसे किसी ने कटार लाकर मस्तिष्क पर तिरछा गड़ा दिया हो। बड़े-बड़े कान जो अंदर से रक्त वर्ण दिखाई दे रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे रक्त का दौरा कानों से ही चलता हो। पीठ सीधी सपाट थी। पूछ लंबी लेकिन नीचे पर बाल के गुच्छे श्वेत रंग के थे, जो ऐसी लग रही थी मानो मजबूत रस्सी के एक सिरे पर श्वेत धागों का गुच्छा बना दिया गया हो।
बछिया की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पूरी तरह से कृष्ण वर्ण होने के बावजूद भी पूंछ का गुच्छा श्वेत व मस्तक के ऊपर चन्द्रकार श्वेत धब्बा जो उसके आकर्षण को और भी बढ़ा रहा था। इसी श्वेत चांद के जैसे धब्बे ने उसके नामकरण में सहायता प्रदान की। मां ने आरती उतारते समय ही कह दिया था कि हमारे घर चंदा आई है, तब क्या था सभी उसे चंदा-चंदा नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया और उस बछिया का नाम चंदा हो गया।
चंदा का स्वभाव शांत और गंभीर था। उसे देखकर ऐसा लगता था मानो कोई योगी योग कर रहा हो। फिर भी दो-तीन दिनों तक उसने थान पर दाना-पानी नहीं किया। उसके स्वभाव से ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने आप नए स्थान पर अजनबी व एकाकी महसूस कर रही हो। उसके आने से घर के सभी गाय,बैल व बकरियां उसे कौतूहल की दृष्टि से देखने लगे थे। धीरे-धीरे उसकी दोस्ती सभी पशुओं से होने लगी थी। अब वह इस परिवार का एक सदस्य बन चुकी थी।
सबसे गहरी दोस्ती या प्रेम यदि उसकी किसी से थी तो बकरियों के छोटे-छोटे बच्चों से जो उसे निहायत परेशान भी करते थे।जब वह बैठी होती तो वे उसकी पीठ गर्दन पर उछलते कूदते और इस प्रकार वह इस आनंद को आंखें बंद करके गर्दन मोड़कर अनुभव करती थी।
धीरे-धीरे समय का चक्र बढ़ते गया। चंदा बछिया से कब भैंस का रूप ले लिया पता ही न चला। लेकिन विधि का विधान कहें या लापरवाही; एक दिन ऐसा आया एक कालरात्रि के समान । बरसात का दिन था। समस्त कृषक भाई अपने खेतों में धान की रोपाई में लगे हुए थे। मेरे घर भी रोपाई का कार्य बड़ी जोरों पर चल रहा था। रोपाई के लिए हमने यूरिया खाद पिताजी ने दो दिन पहले ही लेकर आए थे। जिसे धान रोपाई के पूर्व कीचड़ में छिड़काव किया जाता था।
उस दिन भी यूरिया खाद के छिड़काव के पश्चात शाम को बचा हुआ खाद घर वापिस लाया गया था। अचानक तेज बारिश प्रारंभ हो गई तेज बारिश से खाद को बचाने के लिए उसे थान (भैंस को बांधने के स्थान) पर रख दिया गया। तभी सभी पशु जो चरने के लिए बाहर गए हुए थे, घर पहुंचे और सीधे थान में आ पहुंचे। तब वह अनजान चंदा जिसे क्या पता था कि उसकी थान में जो चीज रखी गई है, वह उसके लिए जहर है। वह उसे दाना समझकर बड़े ही चाव से ग्रहण कर ली। कुछ देर बाद जब वह जोर-जोर से डकार मारने लगी तब पिता जी का ध्यान उस ओर गया। उन्होंने खाली तसला देखा, जिसमें यूरिया खाद रखा हुआ था, जो खत्म हो चुका था। पिताजी के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई। चंदा भी उन्हें देखकर और भी जोर-जोर से डकारे मारने लगी। जैसे कह रही हो हे मालिक! मुझे बचा लीजिए कुछ देर में खड़ी चंदा बैठ गई वह जोर-जोर से कांपने लगी, मुंह से श्वेत रंग का झाग निकलने लगा। गांव के लोग भी आकर जमा होने लगे। किसी ने बताया कि इसे खटाई पीस कर पिलाई जाए। जिससे जहर निकल जाएगा। हमने आम-नीबू जो भी मिला पीस कर उसे पिलाने लगे। चंदा की आंखों में पानी, मुंह से झाग, शरीर का कांपना, पेशाब तथा मल का निकलना भी प्रारंभ हो चुका था। घर के सारे सदस्यों का रोना-धोना शुरू हो चुका था। इसी कोलाहल के बीच पिताजी जो कि चंदा को खटाई पिला रहे थे। उसके हाथों के ऊपर अचानक चंदा का सिर थम सा गया और उसकी सांसे रुक गई नेत्र बंद हो गए थे। विधाता ने उसे अपने पास में बुला लिया था।
दुःख केवल मानव की ही मृत्यु पर नहीं होता। यदि कोई अन्य जीव चाहे वे पशु-पक्षी ही क्यो न हो। उससे प्रेम सम्बंध बन जाए तो सबसे ज्यादा दुःख होता है। यही दुःख मेरे परिवार जनों को चन्दा की मृत्यु पर हुआ।

बी0 आर0 महंत
वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी

Language: Hindi
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