Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Feb 2020 · 5 min read

चना – स्वरचित – डी के निवातिया

चना

‘चना’ अपने नाम के जैसे भी खुद भी छोटा सा ही है, हाँ है तो छोटा ही मगर अपने गुण, प्रकृति, स्वभाव व आचरण से उतना ही विशाल है। वैसे तो चना एक प्रमुख दलहनी फसल है। चना के आटे को बेसन कहते हैं। जिसके बने अनेक तरह के पकवान आप बड़े चटकारे लेकर खाते है। यह पादप जगत से है इसे सिमी के नाम से भी जाना जाता है, अब तो चने की भी अनेक प्रजातियां प्रचलित है जैसे काबुली चना, हरा चना, देशी चना, आदि आदि।

देशी चने से याद आया चना तो प्राचीन काल में हम भारतीयों का मुख्य आहार था। बचपन में दादा जी कहा करते थे, बेटा हमने तो गुड़ चने का चबेना खाकर ही जीवन बिताया है। ये आज का ज़माना है जो गेहूं सरताज हो गया। वरना पहले क्या था, हम इंसानों और जानवरों का एक ही भोजन था चना। खुद भी चने के बने सत्तू, हलवा, आग में भुने चने, खाते थे और अपने मवेशियों की भी चने की घास, चने की खल- चूरी, चने का छिलका यही सब खिलाया करते थे, हालांकि आज स्पेशल में खाया जाता है उस समय में ये खाना मज़बूरी थी। आजकल इसे घोड़ों का खाजा बताया जाता है, कई नीम हकीम घर के ज्ञानी पंडित तो इसे उपहास के रूप में देखते है, कहते है चना खाने से ताकत तो बढ़ती है पर बुद्धि नष्ट होती है। अब इन्हें कौन समझाए अगर बुद्धि नष्ट होती तो चने खाकर अंग्रेज़ो से आजादी न पाते, तब ताकत के साथ साथ बुद्धि की भी उतनी ही जरूरत थी।
शायद नहीं जानते यह चना खाकर ही पूर्वजों ने गोरों को ”नाको चने चबाएं थे’ वो भी ”लोहे के चने” । वरना बच्चू आज भी गुलामी में रह रहे होते और यूं चने की तरह उछलते कूदते नज़र न आते। यकीन न हो तो पूछ लेना अपने पुरखो से यदि उस समय का कोई हो आपके घर, परिवार, रिश्ते नातेदारों में। वैसे काम कठिन है क्योंकि उनकी बताई बाते आज की पीढ़ी को रास भी कहां आती है।

नाम भले ही छोटा और साधारण लगे लेकिन पौष्टिकता में आज के भोजन से कई ज्यादा बेहतर और लाभदायक है। इसकी महत्ता के बारे में कई साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में की है। आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने चने पर पूरी एक कविता ही रच डाली जबकि पद्य की अपेक्षा वो गद्य के स्वामी माने जाते है फिर भी उनकी चने पर ये रचना शायद ही आप लोगो ने पढ़ी हो, यदि नहीं तो मै इस पुनीत काम को कर देता हूं क्योंकि बात चने की जो है, कविता का शीर्षक है चना ज़ोर गरम

चना जोर गरम।
चना बनावैं घासी राम। जिनकी झोली में दूकान।।
चना चुरमुर-चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोलै।।
चना खावैं तोकी मैना। बोलैं अच्छा बना चबैना।।
चना खाएँ गफूरन, मुन्ना। बोलैं और नहिं कुछ सुन्ना।।
चना खाते सब बंगाली। जिनकी धोती ढीली-ढाली।।
चना खाते मियाँ जुलाहे। दाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे।।
चना हाकिम सब खा जाते। सब पर दूना टैक्स लगाते।।
चना जोर गरम।।

यदि आप साहित्य प्रेमी है तो आपने चने के माध्यम से कवि के द्वारा उसकी महत्ता को समझ ही लिया होगा। इतना ही नहीं साहित्यक के हमारे प्रेरणा स्रोत साहित्यक के प्रणेता धनपत राय उर्फ मुंशी प्रेमचंद जी को स्वयं भी लाई-गुड़, चना पसंद करते शायद यही कारण है कि अपनी अनेक कहानियों में चने का जिक्र किया है। भई इससे दादा जी की बताई बात की पुष्टि होती है।

चने पर सबकी अपनी अपनी राय अपना अपना मत है, किसी ने इसकी महत्ता को समझा तो किसी ने उपहास की दृष्टि से देखा, जैसे कईयों को कहते सुना होगा ”चने के झाड़ पर चढ़ाना” अब ये तो सभी जानते है कि बेचारा चना खुद कितना बड़ा होता है और उसका पेड़ या झाड़ कितना बड़ा होता है। ”चने के साथ घुन का पिसना” अर्थात दोषी के साथ निर्दोष का मारा जाना…..कोई कहता है कि ”अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता” शायद वो नहीं जानते की भाड़ फोड़े या न फोड़े अगर तबियत से उछल जाए तो भड़बुजे की आंख जरूर फोड़ सकता है। तो इतना कमजोर कैसे समझ लिया भाई चने को शायद आपको कभी ”लोहे के चने चबाने” का अवसर प्राप्त नहीं हुआ शायद हुआ होता तो गुड़ चने की कीमत पता चल जाती।

आप सभी ने एक कहावत सुनी होगी “खाएँ चना रहे बना” इसका मतलब हैं चना हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं और चने खाने से हमारे अंदर इतने फायदे होते हैं कि आप सोच भी नहीं सकते, एक और प्रसिद्ध कहावत हैं “चना गरीबों का बादाम” है, यह इसीलिए क्योंकि यह इतना महंगा भी नही होता है। आज भी बादाम के मुकाबले और ताकत में इसका जवाब नहीं यकीन न आये तो यह बात घोड़े से ही जान लो जिसका जिक्र छुटभैये हकीम वैद्य ही नहीं करते, बल्कि यह विज्ञान ने भी साबित किया है, विज्ञान तो इतना प्रभावित हुआ कि उसने शक्ति को मापने की इकाई ही घोड़े के नाम पर (होर्स पावर) रख दी जिसे आप भी जानते है और मानते है, स्वीकार करो या न करो बात पते कि है, क्योंकि चने की है। डाक्टरों ने तो स्वास्थ्य के साथ साथ डायबिटीज़, पीलिया,अस्थमा, सुस्ती, कब्ज, एनीमिया, वजन घटाना, मतली आना, जैसी कई बीमारियों से छुटकारा पाने जैसे अनेक फायदे बता दिए, चना हमारे शरीर कें लिए बहुत फायदेमंद होता हैं क्योंकि कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन और विटामिन्स पाए जाते हैं।सर्दियों में चने के आटे का हलवा अस्थमा में फायदेमंद होता हैं। हंसी – मज़ाक से लेकर, सेहत – स्वास्थ्य और जीवन – यापन में अहम भूमिका निभाने वाला चना अब हमसे दूर होता नज़र आता है। वैसे बात चने की है तो अब मुझे भी ज्यादा डाक्टरी दिखाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कहीं आप मुझे ही न कह उठे की ”थोथा चना बाजे घना” कहावत चरितार्थ होने लगे।

वैसे चने का इतिहास यही खत्म नहीं होता, चने का स्वाद चखने के लिए जगत पालक भगवान श्रीकृष्ण मुरारी भी अछूते नहीं रहे इसका प्रसंग बहुत बड़ा है लेकिन यहां इतना ही जान लेना काफी है कि एक बार गुरुमाता ने चने की पोटली बाल कृष्णा और उनके सखा सुदामा को खाने के लिए दिए जिन्हें सुदामा जी खुद ही चट कर गए, भगवान कृष्णा जी तरसते रह गए….हालांकि यहां भी सखा सुदामा ने दोस्ती कि मिसाल को प्रबल करते हुए ब्राह्मणी द्वारा दिए श्राप के कारण चने खुद ही खाकर दरिद्रता का श्राप अपने पर ले लिया था….. जिसका मोल बाद में श्रीकृष्ण जी ने द्वारका पूरी में उनके चावल खाकर चुकाया था।

और भी अनेक प्रसंग है लेकिन चने की महत्ता समझने के लिए इतना ही काफी है।
लेकिन यह बात तो पक्की है कि आज हर कोई चने को फिर से याद करने के लिए मजबूर हो गया, इसीलिए अब चने की कीमत भी उछाल पर रहती है।।

आलेख – स्वरचित – डी के निवातिया

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1512 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डी. के. निवातिया
View all
You may also like:
दुकान मे बैठने का मज़ा
दुकान मे बैठने का मज़ा
Vansh Agarwal
3568.💐 *पूर्णिका* 💐
3568.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
🌹जिन्दगी🌹
🌹जिन्दगी🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
परिणाम जो भी हो हमें खुश होना चाहिए, हमें जागरूक के साथ कर्म
परिणाम जो भी हो हमें खुश होना चाहिए, हमें जागरूक के साथ कर्म
Ravikesh Jha
एक न एक दिन मर जाना है यह सब को पता है
एक न एक दिन मर जाना है यह सब को पता है
Ranjeet kumar patre
মহাদেবকে নিয়ে লেখা কবিতা
মহাদেবকে নিয়ে লেখা কবিতা
Arghyadeep Chakraborty
आज की सौगात जो बख्शी प्रभु ने है तुझे
आज की सौगात जो बख्शी प्रभु ने है तुझे
Saraswati Bajpai
कूच-ए-इश्क़ में मुहब्बत की कलियां बिखराते रहना,
कूच-ए-इश्क़ में मुहब्बत की कलियां बिखराते रहना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*जन्म-दिवस आते रहें साल दर साल यूँ ही*
*जन्म-दिवस आते रहें साल दर साल यूँ ही*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रीत हमारी हो
प्रीत हमारी हो
singh kunwar sarvendra vikram
सियासत कमतर नहीं शतरंज के खेल से ,
सियासत कमतर नहीं शतरंज के खेल से ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
वो अनजाना शहर
वो अनजाना शहर
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ज़माने की नजर में बहुत
ज़माने की नजर में बहुत
शिव प्रताप लोधी
*जिसने भी देखा अंतर्मन, उसने ही प्रभु पाया है (हिंदी गजल)*
*जिसने भी देखा अंतर्मन, उसने ही प्रभु पाया है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
रमेशराज की तेवरी
रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
पीड़ाएँ
पीड़ाएँ
Niharika Verma
अज़ल से इंतजार किसका है
अज़ल से इंतजार किसका है
Shweta Soni
जो राम हमारे कण कण में थे उन पर बड़ा सवाल किया।
जो राम हमारे कण कण में थे उन पर बड़ा सवाल किया।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
"आँसू "
Dr. Kishan tandon kranti
हिदायत
हिदायत
Dr. Rajeev Jain
Shayari
Shayari
Sahil Ahmad
बदल जाते हैं मौसम
बदल जाते हैं मौसम
Dr fauzia Naseem shad
..
..
*प्रणय*
दिल की धड़कन भी
दिल की धड़कन भी
Surinder blackpen
सदा बढ़ता है,वह 'नायक' अमल बन ताज ठुकराता।
सदा बढ़ता है,वह 'नायक' अमल बन ताज ठुकराता।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
"वक्त"के भी अजीब किस्से हैं
नेताम आर सी
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
Dr. Shakreen Sageer
"It’s dark because you are trying too hard. Lightly child, l
पूर्वार्थ
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
करोगे रूह से जो काम दिल रुस्तम बना दोगे
करोगे रूह से जो काम दिल रुस्तम बना दोगे
आर.एस. 'प्रीतम'
Loading...