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7 Nov 2024 · 1 min read

चढ़ता सूरज ढलते देखा,

चढ़ता सूरज ढलते देखा,
रोगन के बिन दीप जले।
हीरा मिट्टी भाव बिके न,
खोटा सिक्का खूब चले।

उसका भी पालन हो जाता,
बन अनाथ जो जग में आता।
हरि कृपा हो तो सुन बुल्ला,
नीर कंगूरे को चढ़ जाता।

लोग कहें कि ‘दाल गले न’
बुल्ला पाहन गलते देखा।
जिसने राम का मान किया न,
रिक्त हाथ रह मलते देखा।

कोई नङ्गे पैर चले तो,
कोई खोजे छाया।
क्यों न रहे कृतज्ञ हरि का,
बुल्ला ने जब सब कुछ पाया।

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