चटर-पटर
__लघुकथा__
चटर-पटर
*अनिल शूर आज़ाद
पहले पूजनीय मां और अब..पापा का अस्पताल में दुखद निधन! मात्र सत्रह माह की अल्पअवधि में परिवार में हुए इन ‘दो बड़े हादसों’ ने उसकी आत्मा, उसके आत्मबल और उसके समूचे वजूद को..जैसे निचोड़ डाला था।
बाहर गोधूलि का समय हो चला था..इधर पापा के कमरे में बड़ी देर से वह अकेले, विचारों में खोया हुआ बैठा था..
आज वह शिद्दत से अनुभव कर रहा था कि ‘मां की आकस्मिक मौत ने’ पापा को कितना अकेला कर दिया था। यों..घर में सब पापा से अत्यंत लगाव रखते एवं सम्मान करते थे..पर अपने अपने कामों में सब ‘ज्यादा ही व्यस्त’ भी थे..ऐसे कितने ही अवसर आज उसे याद आ रहे थे जिनमे वह अपने पापा के पास हो सकता था, पर हुआ नही था..आज वह कुछ पल उनके श्रीचरणों में बैठकर गुजारने के लिए, तड़प रहा था, पर अब..वो नही रहे थे!
एकाएक अपने कान के पास मच्छर की गूंज सुनकर उसकी तन्द्रा टूटी..खिड़की की जाली खुली रह जाने के कारण, बहुत से मच्छर अंदर आ गए थे।
उसने पास रखा इलेक्ट्रिक रैकेट उठाया और पापा के कमरे में घुस आये एक एक मच्छर को मारने लगा.. सूने-अंधेरे-एकाकी..उस कमरे में, अब बस रह रहकर यही आवाजें उभर रही थी..
चटर-पटर..,चटर-पटर..
(रचना-तिथि 9. 2.16)