चकोर सवैया
चकोर सवैया (भगण ऽ।।×7+ गुरु लघु)
(1)
खोकर सैनिक मुश्किल है अब,भारत को धरना उर धीर।
काट करें तन के टुकड़े हम, दें रिपु को हर निर्मम पीर।
वापस लें अपनी धरती सब ,हो अब कायम एक नजीर।
जो घुटनों पर बैठ गया जग, है कहता उसको कब वीर।।
(2)
देख सखी अब मोहन की मुरली नित टेरि बुलावत पास।
दौड़ चलो यमुना तट को जहँ गोपिन संग रचावत रास।
शत्रु नहीं उसका जग में वह प्रेम दिखाय बनावत खास।
जो प्रतिपालक है सब का उससे सब लोग लगावत आस।।
(3)
सूरज रूप प्रचंड धरे धरणी पर है बरसे नित आग।
आतप भीषण कष्ट प्रदायक नष्ट करे मन सेअनुराग।
काट रहा नर वृक्ष धरा अब मेट रहा सब बाग तड़ाग।
देर हुई नहिं मूढ़ मते नर उन्नति का यह दे पथ त्याग।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय