चकमक पत्थर आदमी
चकमक पत्थर आदमी,टकराए तो आग।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
अपनापन मन से गया,बैठा मन में चोर।
बिन मतलब कुछ ना करे,करता करके शोर।
वाणी में कोयल रहे,दिल में काला नाग।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
लगता आत्मा मर गई,सूना देख शरीर।
मानव शोषण देखके,हलचल ना ही पीर।
छोटी-छोटी बात पे,अपराधों का भाग।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
काले करता काम है,मुँह में रखता राम।
खुद सुख पाने को करे,औरों को बदनाम।
अपनी कमियाँ भूल के,शशि में देखे दाग़।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
पूजे हँसके वासना,लूटे पर की लाज़।
धोखा देकर और को,करता फिरता नाज़।
चालाकी नश-नश भरी,जैसे काला काग।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
प्रीतम पीड़ित मन हुआ,टूटा अब विश्वास।
दूषित पवनें बह रही,कैसे आए साँस।
लाओ बंदो बंदगी,हो जाओ बेदाग।
सूखे कोमल भाव हैं,खोया है अनुराग।।
आर.एस.प्रीतम
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