चंद हाइकु
हाइकु
भूखी व प्यासी
आँगन में उदास
गोरैया रूठी ।
मृदुल मना
नारी है सर्वोत्तम
श्रेष्ठ रचना ।
नहीं कुलटा
नारी है मंदाकिनी
शक्ति स्वरूपा ।
जग नियंता
नारी शक्ति प्रणम्य
धन्य विधाता ।
वन की आग
दहकता पलाश
रम्य श्रृंगार ।
फूल निखरे
प्रेम का उपहार
खुशबू बाँटे ।
अश्रु बहते
नयनों से निकल
व्यथा बताते ।
टेसू दहका
बसंत के आंगन
मन महका ।
ऋतु वसंत
टेसू पलाश संग
दहका मन ।
काम अधीर
मदन की प्रत्यञ्चा
अचूक तीर ।
मन महका
सुलग उठी यादें
टेसू दहका ।
राधा की पीड़ा
कनु अधर वंशी
चिपकी सदा ।
बाहर सख्त
साधु मानो श्रीफल
अंतः कोमल ।
प्रभु की याद
मिट जाते मन के
ताप-संताप ।
नयन नीर
आँखों से बह चले
सुनाते पीर ।
ऋतु वसंत
आम्रमञ्जरी संग
बौराया मन ।
धरा के रंग
खिले सरसों संग
पीले हैं अंग ।
बसंत आब
स्मृतियों की याद में
खिला गुलाब ।
सिक्ख-इसाई
लाल नहीं है लहू
किसके भाई ?
शान्ति की खोज
घण्टा में छिपकली
बैठती रोज ।
नहीं बाहर
भगवान मिलेंगे
झाँक भीतर ।
मन मंदिर
ढूँढ मिलें आखिर
प्रभु अजिर ।
भोली सूरत
हृदय में बसती
माँ की मूरत ।
भोर गगन
पंछी के कलरव
मन प्रसन्न ।
ये पीत पात
पतझर के गीत
पवन साथ ।
✍?प्रदीप कुमार दाश “दीपक”