चंद शेर
ये दर्द , ये कराह , ये चीख , ये पागलपन
तूं माँ है बेटे की , वो नही रहा तो क्या करे।
मेरे घर के सामने घर में , एक औरत रोज़ पिटती है
मैं जाऊं न जाऊं , इस कश्मकश में, मेरी रूह रोज़ घिसती है।
तेरे धुंए में अभी तपिश बाकी है
उठ , तेरे सीने में आग बाकी है।
सत्य तो भाव में छिपा है , भाव को संवार प्यारे
कानून तो सतही है , मन को संवार प्यारे.
——-शशि महाजन