चंद एहसासात
हादसे भी जीने के अंदाज़ सिखा जाते है ,
फ़रेब भी ठोकर खाकर संभलना सिखा जाते हैं ,
तब़स्सुम़ भी अज़ाब बन पेश आते हैं ,
निग़ाहें भी सराब़- ए – एहसास बन जातीं हैं ,
वक़्त की गर्दिश दोस्त और दुश्मन के मायने समझा देती है ,
मुफलिसी वक़्त पर पैसे की कीमत बता जातीं हैं ,
रुसवाईयाँ सो रहे ज़मीर को जगा जातीं हैं ,
नाक़ामियाँ भी सब़क का आगाज़ बन जातीं हैं ,
कुदरत का क़हर इंसानिय़त का इल्म़ दे जाती है ,
जुदाईयाँ दिली नज़दीकियों का एहसास करा जातीं हैं ,
फ़ितरत भी इंसानी किरदार का अस़र छोड़ जाती हैं ,
बेहद मेहरबानियां भी छिपी नीयत का पता दे जातीं हैं ,