चंद इज़हार
उन्हें भुलाने की कोशिशें सब नाकाम हो गईं हैंं। कभी वो मेरे शेर बन उभरते हैं , तो कभी ज़ेहन पर नग़मा बनके छा जाते हैंं।
जिंदगी इतनी दुश्वार न थी जितना औरों के ए़हसास ने इसे दुश्वार बना दिया ।
ज़िंदादिली से जीने के अंदाज़ से तो मौत भी श़रमा जाती है ।
क्या करूँ कुछ सोच कर चुप हो जाता हूं , कहीं मेरी साफ़गोई उनकी रुस़वाई का सब़ब न बन जाये।
बहुत शिद्दत से गुजार ली ये जिंदगी , आओ अब थोड़ी सी आवारग़ी कर लें।