चंद इज़हार
ज़माने की नज़रों में गिरने वाले गिरकर कभी ना कभी उठ जाते हैं , पर खुद की नज़रों से गिरने वाले कभी न उब़र पाते हैं ।
वो ज़माने को खुदग़र्ज़ कहते रहे ,पर कभी अपने ग़िरेबान में झांक कर ना देखा, वो खुद कितने खुदग़र्ज़ थे।
जिनको ज़माने ने सताया हो उन्हें चंद अपनों की हम़दर्दी मिल भी जाती है , पर जो अपनों के सताए हों उन्हे हम़दर्दी मुश्क़िल से ही मिलती है।
च़ाहत बिना ज़िंदगी अधूरी है , जिस क़दर खूब़सूऱत फ़ूल की हस्ती बिना म़हक अधूरी है।
क़ुसूर उनकी आंखों की मय़ का था , पर मेरी बेख़ुदी का इल्ज़ाम प़ैमाने पर आया।