चंद अशआर
ऐ ज़िन्दगी तू किसी ख़राब सड़क की जुड़वाँ तो नहीं
ज़रा ज़रा सी देर में गड्ढों की आज़माइश मिलती है
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ऐ पतंग तेरा भी कोई जवाब नहीं
एक डोर के भरोसे आसमाँ छूने चली है
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बड़ा अच्छा लगता है जब देखता हूँ इन बड़ी-बड़ी इमारतों को
फिर ख़याल आता है कि चिड़ियाघर बाहर से ही अच्छे होते हैं
जॉनी अहमद ‘क़ैस’