चंद अल्फ़ाज़
अना की ज़द में रिश्ते काफ़ूर हुए ,
दिल टूट कर मायूस मजबूर हुए ,
कल तक जिन्हें नाज़ था हम रहने पर ,
वो सब मैं के हाथों मा’ज़ूर हुए ,
टूटे तार के साज़ की कोई आवाज़ नहीं होती ,
गिरे ज़मीर की कोई औकात नहीं होती ,
राज़ जो दिल में ना छुपे नजरों से बयाँ हो जाए ,
उस राज़े हक़ीक़त की कोई अहमियत नहीं होती ,
नाहक ज़िंदगी से शिकवा क्यों करें ,
जिंदगी हम से है हम जिंदगी से नहीं ,
खारों के जहाँ में फूलों की तमन्ना क्यूँ करें ,
इख़्तिलाफ़ी माहौल में बाहमी रज़ा-मंदी क्यू्ँ तलाश करें ,