*चंदे से विवाह 【कहानी】*
चंदे से विवाह 【कहानी】
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चंदे में पूरे एक लाख बाईस हजार रुपए इकट्ठे हुए थे । यद्यपि गरीब कन्या के विवाह का लक्ष्य लेकर यह जो कार्य हुआ ,वह बड़ा महत्वपूर्ण था । एक लाख बाईस हजार रुपए की रकम कम नहीं होती लेकिन जब शादी के बाजार में चंदा-कमेटी वाले लोग लड़का ढूँढने के लिए गए तो सरकारी नौकरी का कोई पद सात-आठ लाख रुपए से कम में उपलब्ध नहीं था । उसके बाद चपरासी के लिए खोज शुरू की । यद्यपि मन को कष्ट तो हो रहा था ।
. किशोरी निर्धन जरूरत थी लेकिन पढ़ी लिखी थी । बी.ए. कर चुकी थी। देखने-भालने में भी अच्छी थी। पढ़ाई में होशियार, तीव्र बुद्धि संपन्न । इंटर पास लड़का उसके लिए ढूँढा जाए ,यह कोई अच्छी बात तो नहीं थी । लेकिन बाजार की हालत कुछ और ही थी । चपरासी भी तीन लाख से कम रकम में बात करने के लिए तैयार नहीं था। हार-झक-मारकर चंदा-कमेटी की मीटिंग फिर से बैठी और तय हुआ कि जिन लोगों ने जितना-जितना चंदा दिया है ,वह चंदे की धनराशि अगर दुगनी कर दें तो बात बन जाएगी। ज्यादातर दानदाता दुगनी रकम देने के पक्ष में नहीं थे ,इसलिए मामला कुछ ठंडा-गरम होते हुए खटाई में पड़ गया ।
किसी ने अखबार वालों को चंदा-कमेटी की मीटिंग की खबर पहुँचा दी। अखबार में अगले दिन छप गया कि एक गरीब कन्या के विवाह के लिए अब दोबारा से दोगुना चंदा होगा। मीटिंग में किस गरीब कन्या का विवाह कराने के लिए बातचीत चल रही थी, उसके नाम का उल्लेख तो अखबार ने नहीं किया लेकिन जिन लोगों के नाम तथा जैसी बातें मीटिंग में हुई और अखबार में छपी उसके किशोरी को यह अनुमान हो गया कि यह सब मेरे विवाह के लिए कानाफूसी चल रही है।
किसे मालूम था कि किशोरी को यह दिन देखना पड़ेगा ! किशोरी के पिता साधारण स्थिति के आवश्यक थे लेकिन स्वाभिमानी थे । किराए का घर था मगर एक पैसा भी किराए का चढ़ाऊ नहीं रहता था। एक एक्सीडेंट ने किशोरी के माता और पिता दोनों की जीवन-लीला समाप्त कर दी । अब किराए के घर में अकेली किशोरी दुनिया से संघर्ष करने के लिए रह गई थी । वह भी पिता की तरह ही स्वाभिमानी थी । अखबार की खबर पढ़कर उसके तन-बदन में आग लग गई । ऐसा लगा जैसे बाजार में उसे भीख दी जा रही हो !
क्या मैं कोई उपेक्षित गिरी-पड़ी युवती हूँ?, जिसके ऊपर उपकार किया जा रहा है। मेरे जीवन का निर्णय लेने वाले समाज के कर्ताधर्ता भला कौन होते हैं और मैं उसी से शादी क्यों करूंगी जिसे मुझसे शादी करने के लिए समाज द्वारा जुटाए गए रुपयों का लोभ हो ? मैं दुत्कारती हूँ, ऐसे लड़कों को- किशोरी ने आवेश में भरकर कहा। यद्यपि घर की चहारदीवारी में उसके आक्रोश को सुनने वाला कोई नहीं था ।
बिना देर किए किशोरी अखबार के दफ्तर में पहुँच गई । संपादक के कमरे में बिना दरवाजा खटखटाए उसने प्रवेश किया। संपादक हक्का-बक्का रह गया। एक युवती तमतमाए हुए चेहरे के साथ उसके दफ्तर में उसके ठीक सामने खड़ी थी और कह रही थी -“आपने समझ क्या रखा है ? आप क्या मुझ पर एहसान करने वाले हैं ? मेरी शादी एहसान समझकर क्यों की जा रही है ? धन के लोभियों को आप किसके कहने पर ढूँढने के लिए निकल पड़े ? उनकी धन-पिपासा को संतुष्ट करने के लिए मेरे नाम पर चंदा क्यों इकट्ठा किया जा रहा है ? क्या इन्हीं दुष्ट प्रवृत्तियों से समाज बदलेगा ? ”
संपादक टकटकी लगाए किशोरी के भाषण को सुनने के लिए विवश था। वह समझ तो गया कि बात किस बिंदु पर हो रही है लेकिन गलती उसके अखबार की थी और वह गलती मानने के मूड में भी नहीं था। उसने दबे स्वर में केवल इतना ही कहा – “गरीब कन्याओं के विवाह के लिए समाज में चंदा इकट्ठा करना परोपकार माना जाता है और एक अच्छा लड़का ढूँढ कर शादी के लिए रुपयों को खर्च कर देने से समाज सेवा के विचार को बल मिलता है । इसमें गलत क्या है ? ”
किशोरी जैसे संपादक की मेज पर ही चढ़ने के लिए आतुर हो गई । चिल्लाकर उसने कहा – “आपको इसमें गलत नहीं लग रहा ? मैं पूछती हूँ ,इसमें सही क्या है ? एक लड़की की शादी के लिए बिना पैसा लिए आपको कोई लड़का उपलब्ध नहीं हो पा रहा है ,क्या यह सही है ? समाज की सबसे बड़ी गलती यही है कि एक लड़का मोलभाव कर रहा है और आप पुलिस स्टेशन पर जाकर उसके खिलाफ एफ.आई.आर. भी नहीं लिखा रहे हैं । क्या यह गलती नहीं है ? एक लड़का स्पष्ट रूप से केवल इसलिए शादी से मना कर देता है क्योंकि लड़की की शादी का बजट उसे पसंद नहीं आ रहा है। क्या यह गलत नहीं है ? आखिर आप सुधारना क्या चाहते हैं ? क्या केवल लड़कियों की शादी का बजट सुधारने से समाज-सुधार हो जाएगा ? या लड़कों की मानसिकता को सुधारना आवश्यक है ? अगर लड़कों की मानसिकता धन-लोभी रही तो दहेज के प्रलोभन से ग्रस्त रही एक लड़की की शादी हो सकती है ,दो या चार दस -बीस-सौ-पचास-हजार-दो हजार की हो जाएगी लेकिन समस्या का अंत नहीं होगा । समस्या का अंत तो दहेज के लोभियों को जेल में डालने से ही हो पाएगा । उनके साथ मोलभाव करके आप समाज को बिगाड़ने का काम ही करेंगे । ”
“आखिर आप चाहती क्या हैं ?”- संपादक ने निढाल होकर मानो हथियार डाल दिए ।
“मैं चाहती हूँ कि आप मेरी शादी के लिए चंदा करने का अभियान बंद करें और उन लड़कों की लिस्ट मुझे दें जिन्होंने चंदा-कमेटी की रकम को कम ठहरा कर मुझसे शादी करने से इनकार किया है । ”
“लिस्ट ? कैसी लिस्ट ? मुझे कुछ नहीं पता ? “-संपादक गिड़गिड़ाने की मुद्रा में था । वह हकला रहा था । उसके चेहरे पर पसीना आ गया था। किसी तरह इस नवयुवती से पिंड छूटे ,यही उसकी मनोकामना रह गई थी।
” आप लिस्ट भले न दें ,लेकिन पुलिस सारी लिस्ट निकलवा लेगी । मुझे शादी तब तक नहीं करनी है जब तक मुझे दस रुपए की फूलमाला के साथ जयमाल डालने में संतुष्ट होने वाला नवयुवक नहीं मिल जाता । मैं पुलिस स्टेशन जा रही हूँ।”- कहकर किशोरी किसी सैनिक की भाँति सिर ऊँचा करके संपादक के दफ्तर से बाहर निकल गई।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451