चंदा की डोली उठी
आज सीने में
कुछ टूट रहा है
बहुत मेरा
दम घुट रहा है…
(१)
फिर गूंज रही
कोई शहनाई
शायद कहीं
डोला उठ रहा है…
(२)
जिससे किसी का
घर बस जाए
संसार किसी का
लुट रहा है…
(३)
वह कैसे मनाए
व्याकुल मन को
जिससे साया तक
रूठ रहा है…
(४)
हाय, सिसक रही
घुंघट में गोरी
गांव बचपन का
छूट रहा है…
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Shekhar Chandra Mitra
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