चंचल
मैने कभी पूछा नही
उसने कभी बताया नही
रोज रात कहां
चली जाती है वो ।
मुझे अकेला छोड़
किस की आगोश मे
रोज लक्ष्मण रेखा
लांघ लेती है वो ।
मिला नही जो
दिन के उजाले मे
रोज सपनो मे
तलाश लेती है वो ।
चंचल नादान है रूह मेरी
नित बदलती तृष्णा का
रोज नया रूप
ओढ़ लेती है वो ।।
राज विग 04.06.2020.