चंचल मन हो गया बैरागी
चंचल मन मेरा बड़ा बावरा
कभी इधर तो कभी उधर
पल में यहाँ और पल में वहाँ
कभी दुनिया के इस कोने में
कभी दुनिया के उस कोने में
कहीं आसमान में कहीं सागर तल में
कहीं उसका स्थिर ठिकाना नहीं
वाह रे मेरे चंचल मनवा
बैठ कहीं तो पल दो पल
क्यों तू फिरता बना बावरा
क्या तुझे कहीं बैठना भाता नहीं
तेरे कारण दुनिया हैरान
तू किसी की सुनता नहीं
ओम् ने उसे लगाई फटकार
शांत बैठ गया मन को मार
अब वह बिल्कुल हिलता डुलता नहीं
चंचल मन हो गया बैरागी
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट