चंचल मन भी पागल है (गीत)
“चंचल मन भी पागल है” गीत
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सारी रात जगा यादों में,
चंचल मन भी पागल है।
हल्की सी आहट बूँदों की,
तेरी याद दिलाती है।
रजत चाँदनी छू कर तन को,
सिहरन सी भर जाती है।
ज़ुल्फों की चिलमन ने घेरा-
मुख ने समझा बादल है।
सारी रात जगा यादों में,
चंचल मन भी पागल है।।
बोल पपीहे के सुनती जब,
मन बिरहन सा हो जाता।
गीत मधुर खामोश हुए सब।
व्याकुल जीवन खो जाता।
जुगनू की आवाज़ सुनी तो-
मन ये समझा पायल है।
सारी रात जगा यादों में,
चंचल मन भी पागल है।।
सिसक रही है बिंदी मेरी,
रूप रंग में बस जाओ।
माथे का सिंदूर पुकारे,
रोम-रोम में बस जाओ।
दर्पण भी अब सूना लगता-
बहता मेरा काजल है।
सारी रात जगा यादों में,
चंचल मन भी पागल है।।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज वाराणसी (मो.-9839664017)