चंचला की संघर्ष
बादलों से घिरे आसमानों के बीच चिड़ियों की चहचहाहट एक उमंग प्रदान कर रही थी तथा इस कहानी की नायिका चंचला अपने मन को समझाने का प्रयास कर रही थी।वह मन-ही-मन सोच रही थी “सब अच्छा होगा, ताऊ हमें शहर ले जाने के लिए जरूर आयेंगे। वहाँ जाकर मैं कुछ न कुछ काम करके चिंटू की दवाईयों और अपनी पढ़ाई के खर्चों का इंतजाम कर ही लुँगी।
चंचला महज तेरह वर्ष की भोली- भाली बालिका थी जिसकी माता – पिता की मृत्यु जलयात्रा करते वक्त नाव दुर्घटना से हो गई थी और उसके आठ वर्ष के छोटे भाई चिंटू ,जो कि दम्मा से ग्रसित था ,की जिम्मेदारी चंचला पर आ गई थी । अब चंचला की उम्मीदें उसके ताऊ पर ही टिकी हुई थी जो शहर में काम करते थे तथा वही रहते थे। उन्होंने चंचला को भरोसा दिलाया था कि सावन के पंद्रह दिन बाद वह उसे और उसके भाई को गाँव से शहर ले जाएँगे और तभी से चंचला उस दिन का इंतजार करने लगी थी। वह इसी आस में जी रही थी। आज चिंटू की तबियत और बिगड़ जाने के कारण बगल वाले हरेश काका से पैसे उधार लेकर दवाईयाँ लाई थी।
आज चंचला बहुत खुश थी।आज सावन का वो दिन आ ही गया था जब उसे शहर ले जाने उसके ताऊ आने वाले थे।चंचला के मन का विश्वास और आंखों की चमक बढ़ती ही जा रही थी। तभी फूल तोड़ते चंचला को सरला काकी की आवाज सुनाई पड़ी “अरे!ओ चंचू ,तुमरे ताऊ इसबार शहर ले जाने वाले है न तूझे? चंचला का मन खिल उठा । उसने मुस्कुराते हुए कहा -हाँ काकी,ताऊआने वाले हैं। वहाँ जाकर मैं बहुत मेहनत करूँगी और खूब – पढ़ लिखकर डॉक्टर बनूँगी।काकी तनिक मुस्कुराई और दुआ देकर चली गई।
अब ताऊ के आने का समय हो चुका था। चंचला जब बैलों की घंटी की आवाज सुनती ,वह दौड़कर चौखट तक आ जाती थी।ऐसा करते-करते रात हो गई । उसके मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे।फिर भी, उसने अपने आप संभालते हुए सोचा-हो सकता है की वाहन में कोई परेशानी हुई होगी। ताऊ आ ही जाएँगे।
पूरा सावन खत्म होने के बाद भादो भी बीत गया ,परंतु ताऊ न आए। वह निराशा की अँधेर दरिया में डूब चुकी थी। अब वह क्या करेगी?वह इसी सोच में डूबी हुई थी। अब तक तो वह सेठजी के घर झाड़ू- बर्तन किया करती थी,परंतु चिंटू की दवाइयों के कारण उधार भी बहुत हो गया था।यही सब सोच-सोचकर वह फुट-फुटकर रो रही थी। उसके आँसू पोंछने वाले भी कोई नहीं था वहाँ ।
फिर, उसने अपने को सँभाला तथा संकल्प किया कि वह कड़ी मेहनत करके अपने भाई का इलाज कराएगी तथा अपने सपने को भी पूरा करेंगी।फिर क्या था, वह सेठजी के घर के काम के बाद छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी।तब गाँव वालों ने भी उसका संघर्ष और मनोबल देखकर उसका साथ दिया।अब धीरे – धीरे चिंटू के दवाइयों के लिए पैसे आने लगे। उसकी अथक कर्म को देखकर गाँव के मुंशी लाला ने उसे शहर ले जाने निश्चय किया।लाला के साथ चंचला और चिंटू शहर आ गए । चंचला अब लाला के घर काम करती थी और साथ ही साथ एक अस्पताल में उसे नर्स का कामभी मिल गया।इसी प्रकार, कड़ी मेहनत करके उसने डॉक्टर का कोर्स पूरा किया तथा डॉक्टर बनके अपने स्वप्नों को शाकार की। परंतु उसके भाई का उचित समय पर इलाज न होने के कारण मृत्यु हो गया। अब गाँववाले अपने बच्चों को चंचला के संघर्ष की कहानी सुनाते तथा चंचला जैसी संघर्षशील, कर्मरत तथा होनहार बनने की प्रेरणा देते |
नैतिक:- इस संसार में आपका सपना सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है। हमें हमेशा अपने सपनों को शाकार करने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करना चाहिए। अपनी काबिलियत को इस संसार में प्रदर्शित करना बहुत जरूरी है। यह जीवन एक सुनहरा अवसर है -अपने काबिलियत को साबित करने का।
प्रिय पाठकगण, यह मेरी अपनी काल्पनिक एवं स्वयंरचित रचना है , इसके सभी पात्र मेरी कल्पना के अनुसार है। इसका यथार्थ से कोई लेना -देना नहीं है। अगर पात्र तथा इसकी घटनाएं थोड़ी मिलती है तो यह संयोग मात्र होगा। इसमें मेरी कोई जिम्मेवारी नही होगी । आप सभी प्रिय पाठकगण से अनुरोध है कि इस प्यारी सी रचना पर अपनी प्यारी सी प्रतिक्रिया जरूर से जरूर प्रदर्शित करें। धन्यवाद।