घड़ी ख़ुशी की आई
लगता है घड़ी ख़ुशी की आई है,
होठों पे हल्की सी मुस्कान छाई है।
लगता है घड़ी ख़ुशी की आई है।।
देखना दिखाना क्या,मिलना और मिलाना क्या,
सब सामने और साफ है।
दिल में कुछ ना राज है।।
पहले काज की पहली उमंग है,
ख़ास और बड़ी हँसी हैं।
इंतज़ार तो बहुत था,इस दिन का
लगता है वो घड़ी आ ही गई है।
सब कुछ क्यों सामान्य है,
इतना क्यों अनजान है।
बेताबी सी क्यों छाई है,
हल्की सी फुहार आई है।
कर लूँ सबको बस में अपने,
रह जाए ना कोई रस्मे।
रस्मों – रिवाज़ों को निभाने हैं,
ख़ुशी के गीत गाने हैं।
दुल्हन बन बैठेगी वो,
जाने कैसे ऐठेगी वो।
कैसा होगा उसका चेहरा,
जब वो खिल उठेगी सुनहरा।
वो पल भी कितने होंगे ख़ास,
जब होंगे वो दिल के पास।
कुछ न राज रह जाएगा,
जब सावन गीत गाएगा।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)