घोड़े का जिक्र आते ही
घोड़े का जिक्र आते राणा प्रताप का चेतक याद आता है
वैसे ही गधे का जिक्र आते ही कौन तुमको याद आता है
एक हिंट देता तुमको गौर फरमाइए जरा मेरी बात का
सुना कि आलू से सोना बनाने की वो फेक्ट्री चलाता है
देशहित मे कोई काम करते न देखा होगा तुमने कभी
सेना को बलात्कारी कहने वालों के सँग देखा जाता है
कौन है वो जरा बतलाओ तो उसका नाम तुम मेरे यारोँ
जो लगता कि संसद में भी चरस पीकर के जैसे आता है
नाम भी उसका कुछ मिलावटी लगता क्या तुमको कभी
जब रोना हो , देख उस जोकर का हंसी तुमको आता है
सुना सुनाई नहीं आँखों देखी बातें यहां पर अपनी तुमसे
गौर से सुनोगे तो पाक की बातों को अपनी वो बताता है
मम्मी मम्मी हाँ ये भी नही कहते सुना होगा उसे कभी
पर अक्सर मां के आँचल में छुप सा वो दिख जाता है
गुरु चाणक्य एक बात कह गए विदेशी पे भरोसा नहीं
सन्तान वो भी यहां शायद विदेशियों की कहलाता है
कोई दर्द नहीं होता उसे हमारे सनातम धर्म के दर्द से
चूकिं,वो हिन्द के राष्ट्र धर्म को कभी नहीं अपनाता है
कहता कवि अशोक सपड़ा जाग जाओ हिन्दवासियों
नहीं तो देख लो कौन तुम्हे नीचा अक्सर दिखलाता है
सौ पाँच सौ के लिये बिक मत जाना तुम मतदाता बन
तुम्हे शिकार करने को ये श्वान शेर की खेल में आता है
अपना मत जब भी देना सोच समझकर मत देना सुनो
पाँच साल में ये मौका कभी कभी तुमको मिल पाता है
अशोक सपड़ा हमदर्द